Friday, 26 April 2013

श्री गोपी नाथ जी



श्री प्रभु गोपी नाथ जी, इष्ट हमारे प्राण !
इन लोचन से दूर क्षण, होत नहीं कब ध्यान !

प्राण देह में तब पड़े, जब गाऊँ प्रिये गाथ !
लाल दास ह्रदय बसें, श्री प्रभु गोपी नाथ !

बन्दों प्रथम चरण गुरुदेव, धर निरंतर ध्यान !
जिस गुरुदेव कृपालु होंवे, कीनो दूर अज्ञान !

जड़ ते कर चेतन दियो, तब मार्ग दियो बताये !
बन्दे दरिद्र भाव फंद ते, लीनो तुरंत छुडाये !

निर्गुण कीत अजान पर, कीन्हो बार उपकार !
तिस श्री गुरु लालजी महाराज के चरण पर कोट बार बल्हार !

इक रसना क्या वर्न्हू, कछु समरथ नहीं मोहे !
लाल दास को भजे सदा, चरण कमल रत होए !





मेरौ इष्ट सदा हृदै , श्री प्रभु गोपीनाथ |
मैं दासन को दास हौं ,डोरी उनके हाथ ||
तिस बिन और न मानि हौं ,इही हमारौ नेम |
लाल दास मांगे एही , तिस पद कंज को प्रेम ||१||

धाम चार पुनि नाथ जी ,ब्रह्मा विष्णु महेश |
आदि नरायण पुरुष हरि , चौबीस रूप विशेष ||
सो श्री गोपीनाथ जी , मेरो सब कुछ एह |
लाल दास माता पिता , पुनि देवन को देव ||२||

जागत सोवत आयु सब, रैन दिवस सब स्वांस |
उठत बैठत पान झुक , मन बच एह अभ्यास ||
इष्ट देव हृद में सदा , श्री प्रभु गोपीनाथ |
लाल दास दुही लोक तिस , हस्त कमल मम हाथ ||३||

इष्ट श्री गोपीनाथ जी , जीवन प्राण‌ाधार |
छीन इक हृद ते ना टरो , जसुदा नन्द कुमार ||
एही अनुग्रह कीट पर , सदा चरण की आस |                                                          
रेणु तिसी वा ठोर की ,बन्छ्त लाल को दास ||४||  



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